भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक 'शोले' की रिलीज को 45 साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि फिल्म की असली रिलीज डेट 14 अगस्त 1975 है, क्योंकि इसी दिन फिल्म मुंबई के मिनरवा थिएटर में लगी थी। इसके बाद 15 अगस्त से देश के बाकी इलाकों में रिलीज हुई थी।
सिप्पी ने बताया तब फिल्में आज की तरह एक ही समय पर पैन इंडिया रिलीज नहीं होती थी। टेरेटरी के हिसाब से होती थीं। तब अगस्त में यह मुंबई, बंगाल और हैदराबाद के सेंटर्स पर रिलीज हुई थी। फिर दिल्ली और बाकी सेंटर्स पर यह दीपावली पर रिलीज हुई थी।
शुरू में क्रिटिक्स ने फ्लॉप करार दिया था
सिप्पी के मुताबिक, 'मिनरवा थिएटर में ये फिल्म पांच साल तक चली थी। रिलीज की शुरूआत में ट्रेड क्रिटिक्स ने तो फिल्म का मर्सिया ही पढ़ दिया था। ट्रेड पेपरों में तो पांच हफ्तों तक बैनर हेडलाइन रहा था कि ‘शोले’ के चलते इंडस्ट्री डूब जाएगी। इसकी वजह भी थी। शुरू में थिएटर में दर्शकों की तालियां नहीं बज रही थीं। इसके बाद अपने डाउट मिटाने के लिए मैंने सिनेमाघरों में जाना शुरू किया। मुझे भी साइलेंस ही मिला।'
इंटरवेल में कोई स्टॉल पर नहीं जाता था
'कुछ दिनों के बाद वर्ली सिनेमाघर वाले ने इंटरवल में मुझे बुलाया। उन्होंने कहा कि इंटरवल में स्टॉल पर कोई समोसे वगैरह लेने नहीं आता। मेरा दिल बैठा। पर संचालक ने असलियत बताई कि ठाकुर के हाथ कटने वाले सीन से लेकर बाकी कोई सीन ऑडिएंस मिस नहीं करना चाहती। वो बस गानों में स्टॉल्स पर आकर ठंडा व समोसा लेते हैं।'
उस वक्त अपनी तरह की पहली फिल्म थी 'शोले'
'उस दिन के बाद से लगा कि बड़े पैमाने पर साउंडट्रैक, एडिटिंग और विजुअल्स को देख दर्शक हैरान थे। उस तरह के स्पेशल इफेक्ट्स लोगों ने तब देखे नहीं थे। शोले में उस तरह का पहला एक्सपीरिएंस था। वो काम दरअसल लंदन में हुआ था। टेक्नीकलर में 70 एमएम प्रिंट्स भी लंदन में ही तैयार हुए थे। लिहाजा फिल्म ने जब रफ्तार पकड़ी तो आज आइकॉनिक बन सबके सामने है।'
अमिताभ और धर्मेंद्र दोनों गब्बर का रोल चाहते थे
आगे उन्होंने बताया, 'धरम जी और अमिताभ दोनों चाहते थे कि ठाकुर या गब्बर का रोल निभाने को मिले। धरम जी ने तो ठाकुर न मिलने पर गब्बर भी अटेंम्प्ट किया था, क्योंकि वो बड़ा ही कलरफुल रोल था। इस पर मैंने उन्हें कहा कि अगर आप करना चाहते हैं तो करिए पर बाद में मत कहिएगा कि हेमा मालिनी का क्या हुआ। तब जाकर उन्होंने वीरू का रोल स्वीकार किया।'
हमने अलग तरह का रोमांस दिखाया था
'फिल्म में दोनों की केमिस्ट्री खूब उभर कर आई थी। आम के बगीचे में वीरू का बसंती को पिस्टल सिखाने का आइडिया दोनों में रोमांस के रंग भरने को लेकर था। हमने उसे अलग तरह से फिल्माया। रोमांस सिर्फ जुल्फें उड़ाने और पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमने को लेकर नहीं होता है न। यहां निशाना लगाने के बहाने बसंती के नजदीक आने का अलग तरीका रखा गया।'
गब्बर का कैरेक्टर रियल लाइफ से प्रेरित था
'गब्बर सिंह तो रियल लाइफ कैरेक्टर से इंस्पायर्ड था। चंबल में उन दिनों में गब्बर नाम का डकैत होता था। उसका सरनेम सिंह नहीं था। वो तो वहां घाटियों में जीप वगैरह पर घूमा करता था। मगर हमने क्रिएटिव लिबर्टी ली। जीप के बजाय डकैतों को घोड़ों पर दौड़वाया। घोड़ा खूबसूरत जानवर है। उसकी सवारी अलग समां बांधती है।'
शोले के लिए कई फिल्मों से प्रेरणा ली थी
'यह फिल्म सिर्फ ‘सेवेन समुराई’ से इंस्पायर्ड तो नहीं थी। हमने तो वह फिल्म उस वक्त देखी भी नहीं थी। उसके बारे में सुना भर था। ‘सेवेन समुराई’ से इंस्पायर्ड होकर एक फिल्म बनी थी, ‘मैग्निफिसेंट सेवेन’। हम एक फिल्म से इंस्पायर नहीं हुए। वो जॉनर फिल्म का था। हम ‘मकैनर्स गोल्ड’ से भी इंस्पायर हुए थे। फिर सर्जियो लियोन की ‘फ्यू डॉलर्स मोर’ का भी अक्स था। इंस्पिरेशन तो कहीं से हो सकती है न।'
हमने 'शोले' की स्पेलिंग बदलकर टाइटल इस्तेमाल किया
इस फिल्म का टाइटल बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘शोले’ से आया था। वो एक मैच्योर लव स्टोरी थी। बहुत बड़ी हिट नहीं थी। पर हमें वो टाइटल बहुत पसंद आया। उनकी शोले की अंग्रेजी स्पेलिंग के अंत में ‘LEY’ था। हमने उसे बदल दिया। हमारी स्पेलिंग के लास्ट में ‘LAY’ था।'
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